ये झोलाछाप कायर हैं झोला उठाके चल देगा
ये सौदागर है वतन के लिए लहू बहा नहीं सकते
इनके पूर्वज दिया करते थे अंग्रेजों को सलामी
आज धनपशुओं के चारण भाट हैं अंतर नहीं आया
लहू का आखिरी कतरा जो वतन नाम करते थे
इनकी रगों में ऐसा जज्बा कभी पैदा ही नहीं हुआ
संभल जाओ ये तुम्हारी आंख से काजल चुरा लेंगे
अपनी आंखों की शरम तो गोधरा में बेच आए थे
आंकड़ों कीबाजीगरी के शातिर खिलाड़ी हैं
लाशों के बीच खड़े आपदा में अवसर तलाशेंगे
कभी धोखे से सच मत बोल देना तुम
तुम्हारी सांसे, दवाई भी ये कहीं पर बेच आएंगे।
Monday, May 31, 2021
Sunday, May 30, 2021
साढ़े साती '56' तुम निकले वास्तव में निकृष्ट
7 साल में कर दी तुमने
छह दशक की पूंजी नष्ट
साढ़े साती 56 तुम निकले
वास्तव में निकृष्ट
सुना नहीं जाता अब
तुम्हारे 'मन' का 'विधवा विलाप'
मौन रहो या मनोचिकित्सक से
मिल ही आओ आप
एनटायर की डिग्री लेकर भी
है अधकचरा ज्ञान
मन का मैल हटाने भी
चलवाओ 'स्वच्छता अभियान'
चीन्ह चीन्ह कर बाँटी तुमने
राहत, सांसे और दवाई
जो 'आपदा में अवसर' ढूंढे
वो है निर्मम कसाई
बीमारी और भूख से लड़ती
मर रही देश की जनता
रोन्दु 'फकीर' को अब भी है बस
अपने महलों की चिंता
'नाली का कीड़ा' कहकर भी
सम्मान दे दिया ज्यादा
उन्हें यथोचित शब्द बोलने
तोड़नी होगी संसदिय भाषा की मर्यादा
Friday, May 28, 2021
गंगा में लाशों के चश्मदीद बहुत हैं
अब लोग लिख रहे हैं
लिखना भी चाहिए
वह शक्स है कमीना
दिखना भी चाहिए
सब लोग डरे उससे
जरूरी तो नहीं है
इस बात की उसे भी सनद
होनी ही चाहिए
खाऊँगा न खाने दूँगा
जो कहता था चीख के
आज खा गया वो देश
पता होना चाहिए
दाढ़ी बढ़ाके हर कोई
होता नहीं है संत
अब सब समझ गए हैं
समझना भी चाहिए
सुना है किसी ने उसको
दिखा दी है उसकी औकात
लाख बदहजमी हो पर ये
हजम होना चाहिए
गंगा में लाशों के
चश्मदीद बहुत हैं
अब सुराग न मिटा पाओगे
पता होना चाहिए
मौतों के सौदागर से
राजधर्म की उम्मीद
उनके बाप को नहीं थी
तो क्या हमें होनी चाहिए
रावण का भी अहंकार
टिक न सका था
एक बार पढ़ लो रामायण
पढऩी भी चाहिए
लिखना भी चाहिए
वह शक्स है कमीना
दिखना भी चाहिए
सब लोग डरे उससे
जरूरी तो नहीं है
इस बात की उसे भी सनद
होनी ही चाहिए
खाऊँगा न खाने दूँगा
जो कहता था चीख के
आज खा गया वो देश
पता होना चाहिए
दाढ़ी बढ़ाके हर कोई
होता नहीं है संत
अब सब समझ गए हैं
समझना भी चाहिए
सुना है किसी ने उसको
दिखा दी है उसकी औकात
लाख बदहजमी हो पर ये
हजम होना चाहिए
गंगा में लाशों के
चश्मदीद बहुत हैं
अब सुराग न मिटा पाओगे
पता होना चाहिए
मौतों के सौदागर से
राजधर्म की उम्मीद
उनके बाप को नहीं थी
तो क्या हमें होनी चाहिए
रावण का भी अहंकार
टिक न सका था
एक बार पढ़ लो रामायण
पढऩी भी चाहिए
वो मौन था पर उसे
चिंता थी देश की
वाचाल लापरवाह को फेंकू
कहना ही चाहिए
वो तो दुकानदार है
ये जानते थे हम
अब हो रहा पछतावा
नही होना चाहिए
रंगा कहो बिल्ला कहो
नंगे खड़े है वो,
उनको नही पड़ता है फर्क
क्या पड़ना चाहिए?
वो इंसान नही जो तलाशे
आपदा में अवसर
ये अच्छी बात नही
ये पता होना चाहिए
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