ये झोलाछाप कायर हैं झोला उठाके चल देगा
ये सौदागर है वतन के लिए लहू बहा नहीं सकते
इनके पूर्वज दिया करते थे अंग्रेजों को सलामी
आज धनपशुओं के चारण भाट हैं अंतर नहीं आया
लहू का आखिरी कतरा जो वतन नाम करते थे
इनकी रगों में ऐसा जज्बा कभी पैदा ही नहीं हुआ
संभल जाओ ये तुम्हारी आंख से काजल चुरा लेंगे
अपनी आंखों की शरम तो गोधरा में बेच आए थे
आंकड़ों कीबाजीगरी के शातिर खिलाड़ी हैं
लाशों के बीच खड़े आपदा में अवसर तलाशेंगे
कभी धोखे से सच मत बोल देना तुम
तुम्हारी सांसे, दवाई भी ये कहीं पर बेच आएंगे।
Monday, May 31, 2021
लाशों के बीच खड़े आपदा में अवसर तलाशेंगे
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